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स्वर्ग कैसा है? स्वर्ग में क्या-क्या है? what does heaven look lik

स्वर्ग कैसा है? स्वर्ग में क्या-क्या है? what does heaven look like


केवल यीशु मसीह ने स्वर्ग के संबंध में स्पष्ट टिप्पणियों दी हैं। धरती पर सभी धर्मों में स्वर्ग के बारे में शिक्षाएँ दी जाती हैं। लेकिन स्वर्ग के संबंध में सबसे स्पष्ट वरण यीशु मसीह ने दिया है। स्वर्ग परमप्रधान परमेश्वर का सिंहासन है। अति पवित्र परमेश्वर अपने अति पवित्र स्वर्ग में विराजमान होकर ब्रह्माण्ड को चलाता है। 


यीशु मसीह स्वर्ग से धरती पर उतर आया था। यीशु मसीह ने सिखाया कि यदि मानव पवित्र परमप्रधान परमेश्वर के मार्ग पर न चले तो वह स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर पाएगा। केवल धार्मिक विधियों पर चलने से, या मरणोपरांत विधियों पूरी करने में कोई भी स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर पाएगा। मरणोपरांत क्रियायें कराने वाले यह जरूर मानते है कि मानव की आत्मा अमर है।


अनेक लोगों का मानना है कि मानव को अनेक जन्म-मरण के चक्रों से गुजरकर मोक्ष प्राप्त होता है। किसी धर्म में सिखाया जाता है कि सात जन्म-मरण होता है, तो किसी और धर्म में चौरासी लाख जन्म-मरण। परंतु बाईबल सिखाती है कि एक ही जन्म, एक मरण और उसके बाद मानव को परमेश्वर के न्यायासन के सामने अपना लेखा-जोखा देने के लिए खड़ा होना पड़ेगा। 


यीशु मसीह पर विश्वास करना और यीशु की शिक्षाओं पर चलना ही स्वर्ग जाने का एकमात्र उपाय है। स्वर्ग में शांति और आनंद है। वहाँ जीवन का जल इस जीवन का वृक्ष है। वहाँ जीवन की रोटी एवं मन्ना है। लाखों-करोड़ों स्वर्गदूत है। स्वर्ग का जीवन अनंत है। जिनके नाम जीवन की पुस्तक में पाए जाएंगे, वे ही स्वर्ग में प्रवेश करेंगे। जिनके नाम जीवन की पुस्तक में पाए नहीं जाएंगे। वे नरक की आग की झील में डाले जाएंगे। जीते जी यीशु मसीह द्वारा सिखाई गई शिक्षाओं पर चलने वालों के नाम जीवन की पुस्तक में लिखे जाएंगे और वे ही स्वर्ग में प्रवेश करेंगे।


यूहन्ना ने अपने स्वप्न में स्वर्ग की महिमा को देखा जिसमें परमेश्वर की महिमा थी और उसकी ज्योति बहुत ही बहुमूल्य पत्थर अर्थात् बिल्लोर के समान, यशव को नाई स्वच्छ थी। उसकी शहरपनाह बड़ी ऊँची थी. जिसके बारह फाटक और फाटकों पर बारह स्वर्गदूत थे। उस शहरपनाह की जुड़ाई यशब की थी और नगर ऐसे चोखे सोने का था जो स्वच्छ कांच के समान हो। उस नगर की नींव बहुमूल्य पत्थरों से संवारी हुई थी। पहली नींव यशब की दूसरी नीलमणि की तीसरी लालडी की, चौथी मरकत की, पाँचवीं गोमेदक की. छठवीं माणिक्य की सातवीं पीतमणि की, आठवी पेरोज की नौवीं पुखराज की, दसवीं लहसनिए की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की. बारहवी याकूत की और बारह फाटक, बारह मोतियों के थे और नगर का सड़क स्वच्छ काँच के समान चोखे सोने की थी। 


और उसमें कोई मन्दिर न था, क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर और मेम्ना ( यीशु ) उसका मन्दिर है। उस नगर में सूर्य और चान्द के उजाले का प्रयोजन नहीं, क्योंकि परमेश्वर के तेज से उसमें उजाला हो रहा है और मेम्ना उसका दीपक है, वहाँ कोई रोग बीमारियाँ, लड़ाई झगड़े, कंगालपन, निराशा, दुख, मुसीबत नहीं है वहाँ प्रभु यीशु मसीह के साथ रहने के कारण कोई दुख नहीं है। इस सुन्दर जगह में प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें प्रवेश मिलता है। इसी प्रभु के राज्य के लिए हम आपका स्वागत करते हैं।" आप यूहन्ना 1:12 याद करें।


"परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।" यूहन्ना 1:12 


प्रभु के राज्य में प्रवेश कैसे करें? ( how will we go to heaven)


जब एक मनुष्य इस धरती पर जन्म लेता है तब एक नयी आत्मा की शुरुआत होती है। आदम-हव्वा के पाप के कारण जन्म से ही पाप उस बच्चे में होता है। इसलिए वह बचपन में ही बुरा सोचता है और बुरा करता है। जब यह बच्चा पैद होने के बाद अपनी जिन्दगी में जो पाप करता है उसको कर्म पाप कहते हैं। इन दोनों पापों की मुक्ति के लिए इंसान को यीशु से माफी मांगनी है, पश्चाताप करना है, पश्चाताप का मतलब - मैंने जो पाप किया है, उसका अंगीकार करता हूँ और आगे मैं वो पाप नहीं करूंगा इसी को पश्चाताप कहते हैं। ऐसे ही जो व्यक्ति अपने पापो का अंगीकार करके यीशु से प्रार्थना करता है तो यीशु अपने पवित्र लहू से उसके पापों को धोकर उसे शुद्ध करता है।


जब यीशु से आप प्रार्थना करते हैं, यीशु आपको पवित्रात्मा देता है। पवित्रात्मा जब आपके दिल में आता है तो आपके हृदय के अन्दर पवित्र विचार आते हैं। पवित्रात्मा आपको पाप, सत्य और अधर्म के बारे में निरुत्तर करता है। आप को पवित्रात्मा की बात मानना जरूरी है। जब आप पवित्रात्मा की बात मानेंगे आपके जीवन में प्रभु खुद अगुवाई देना शुरू करेगा।


लेकिन यहीं पर कई लोग भटक जाते हैं पवित्रात्मा जब अगुवाई करता है तो जो लोग उस समय अपने हृदय को कठोर करके अविश्वास करते हैं वो अपने पूर्वजों का रीति-रिवाज छोड़ना नहीं चाहते।


यीशु ने कहा, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।


आप यूहन्ना 3 का 16 याद करे


"क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास रखे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए।"


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