हम सब जीवन में कभी न कभी ऐसी स्थिति से गुज़रते हैं जब हमारी प्रार्थनाएँ लंबे समय तक अनुत्तरित लगती हैं। हम परमेश्वर के सामने आँसुओं और टूटी हुई आशाओं के साथ खड़े होते हैं और पूछते हैं –
"हे प्रभु, आप मेरी सुनते क्यों नहीं?"
यह सवाल हर उस व्यक्ति के मन में उठता है जिसने सच्चे दिल से प्रार्थना की है और फिर भी अपेक्षित उत्तर नहीं पाया। परंतु, बाइबल हमें सिखाती है कि यह परिस्थितियाँ हमारे विश्वास की परीक्षा होती हैं। यह लेख इसी प्रश्न पर गहनता से प्रकाश डालता है और यह बताता है कि जब प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं मिलता तो हमें कैसे प्रतिक्रिया करनी चाहिए।
1. प्रार्थना क्यों कभी अनुत्तरित लगती है?
बाइबल हमें सिखाती है कि परमेश्वर हर प्रार्थना को सुनते हैं (भजन संहिता 34:15)। परंतु, ऐसा क्यों लगता है कि हमारी प्रार्थनाओं का कोई जवाब नहीं मिला? इसके कई कारण हो सकते हैं:
-
परमेश्वर का समय (God’s Timing)
-
बाइबल कहती है:
"हर एक बात का एक समय, और स्वर्ग के नीचे हर एक काम का समय है।" (सभोपदेशक 3:1)परमेश्वर का समय हमारे समय से भिन्न है। जब हमें तुरंत उत्तर चाहिए होता है, तब वह कह सकते हैं – “अभी नहीं, इंतज़ार करो।”
-
-
हमारी आत्मिक तैयारी अधूरी होना
-
कई बार परमेश्वर हमें तैयार करना चाहते हैं ताकि हम उसके उत्तर को सही तरह से संभाल सकें।
-
-
परमेश्वर की योजना कुछ और होना
-
हमारी इच्छा और परमेश्वर की इच्छा में अंतर हो सकता है। बाइबल कहती है कि उसकी योजनाएँ हमें हानि पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि भलाई और आशा देने के लिए हैं (यिर्मयाह 29:11)।
-
-
पाप या अविश्वास बाधा बनना
-
यशायाह 59:2 कहता है:
"तुम्हारे अधर्म ने तुम्हें अपने परमेश्वर से अलग कर दिया है।"जब हम पाप में जीते हैं तो यह हमारी प्रार्थना के उत्तर में बाधा बन सकता है।
-
2. विश्वास की परीक्षा क्यों होती है?
विश्वास का वास्तविक मूल्य तब सामने आता है जब हम कठिनाई में भी परमेश्वर पर भरोसा करते हैं।
"तुम्हारे विश्वास का परखा जाना आग से ताए हुए नाशमान सोने से भी अधिक बहुमूल्य है।" (1 पतरस 1:7)
-
परीक्षा हमें परिपक्व बनाती है।
-
यह हमें परमेश्वर के और करीब लाती है।
-
यह हमारे धैर्य और आज्ञाकारिता को मजबूत करती है।
अगर हर प्रार्थना तुरंत पूरी हो जाती, तो हमें विश्वास की ज़रूरत ही क्यों होती?
3. बाइबल के पात्र जिन्होंने विश्वास की परीक्षा झेली
अय्यूब (Job)
अय्यूब ने अपने जीवन में सब कुछ खो दिया – परिवार, धन, स्वास्थ्य। उसने प्रार्थना की, रोया, सवाल किया, लेकिन परमेश्वर तुरंत प्रकट नहीं हुए। फिर भी अय्यूब ने कहा:
"यद्यपि वह मुझे मार डाले, तौभी मैं उसी पर भरोसा रखूँगा।" (अय्यूब 13:15)
हन्ना (Hannah)
हन्ना ने वर्षों तक संतान के लिए प्रार्थना की। समाज ने उसे ताना दिया, उसका हृदय टूटा, परंतु उसने विश्वास नहीं छोड़ा। और समय पूरा होने पर परमेश्वर ने उसे शमूएल दिया।
यीशु मसीह (Jesus Christ)
यहाँ तक कि स्वयं यीशु ने भी क्रूस पर पुकारा:
"हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?" (मत्ती 27:46)
परन्तु अंत में, उसने पिता की योजना को स्वीकार किया और विजय प्राप्त की।
4. जब प्रार्थना का उत्तर नहीं मिले तो क्या करें?
(1) धैर्य रखें और प्रतीक्षा करें
-
भजन संहिता 27:14:
"यहोवा की बाट जोह; हियाव बाँध, और तेरा मन दृढ़ रहे।"इंतज़ार कठिन है, परंतु परमेश्वर की प्रतीक्षा करने वालों को हमेशा आशीष मिलती है।
(2) अपने जीवन की जाँच करें
-
क्या कहीं कोई पाप या अविश्वास तो बाधा नहीं बना?
-
पश्चाताप की प्रार्थना करें और परमेश्वर से शुद्ध हृदय माँगें।
(3) परमेश्वर की इच्छा को स्वीकारें
-
याद रखें, परमेश्वर वही देते हैं जो हमारे लिए सर्वोत्तम है।
-
कई बार "ना" भी परमेश्वर का उत्तर होता है, क्योंकि उसके पास बेहतर योजना होती है।
(4) धन्यवाद करते रहें
-
1 थिस्सलुनीकियों 5:18:
"हर बात में धन्यवाद करो।"
-
धन्यवाद करना हमें निराशा से बाहर लाता है और आशा से भर देता है।
(5) प्रार्थना जारी रखें
-
यीशु ने सिखाया कि हमें लगातार प्रार्थना करनी चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए (लूका 18:1)।
5. जब प्रार्थना का उत्तर देरी से आता है तो उसका लाभ
-
1. हमारा विश्वास और मजबूत होता है।
-
2. हम धैर्य और नम्रता सीखते हैं।
-
3. हम परमेश्वर के चमत्कार को और गहराई से अनुभव करते हैं।
-
4. हम दूसरों के लिए गवाही बनते हैं।
6. व्यक्तिगत अनुभव की तरह सोचें
कल्पना कीजिए – एक माँ अपने छोटे बच्चे को तुरंत हर चीज़ नहीं देती। अगर बच्चा बार-बार चॉकलेट माँगे और माँ हर बार दे दे, तो उसका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। परंतु जब माँ इंतज़ार करवाती है, तो वह उसके भले के लिए करती है।
इसी तरह, जब परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देर से देते हैं या किसी और रूप में देते हैं, तो वह हमें सज़ा नहीं दे रहे होते, बल्कि हमारे भविष्य के लिए हमें तैयार कर रहे होते हैं।
7. निष्कर्ष: परीक्षा में भी विश्वास बनाए रखें
विश्वास की असली परीक्षा तब होती है जब सब कुछ चुप लगता है। परमेश्वर की चुप्पी भी एक भाषा है, जो हमें धैर्य, भरोसा और नम्रता सिखाती है।
आज यदि आपकी प्रार्थना का उत्तर नहीं मिल रहा है, तो हार मत मानिए। यह याद रखिए कि –
-
परमेश्वर चुप हैं, लेकिन अनुपस्थित नहीं।
-
वह देर कर सकते हैं, लेकिन भूलते नहीं।
-
उसका समय और योजना हमेशा सर्वोत्तम है।
अंतिम संदेश
यदि आपकी प्रार्थनाएँ अनुत्तरित लग रही हैं, तो यह निराशा का समय नहीं बल्कि विश्वास में और गहराई से जड़ पकड़ने का अवसर है। विश्वास की परीक्षा कठिन हो सकती है, लेकिन उसके बाद मिलने वाला प्रतिफल अमूल्य है।
"जो विश्वास से दृढ़ रहता है वही अंत तक उद्धार पाएगा।" (मत्ती 24:13)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें