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यीशु सच्ची दाखलता - यूहन्ना 15:1-7

यीशु सच्ची दाखलता - यूहन्ना 15:1-7

john chapter 15:1-7

बाइबल बताती है की परमेश्वर का वचन यूहना रचित सुसमाचार की पुस्तक उसके 15वें अध्याय वचन 1 में लिखा है कि परमेश्वर यीशु मसीह ने कहा की "मैं सच्ची दखलता हूँ; तथा मेरा पिता किसान है।"(यूहन्ना 15:2) जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले। 


इस वचन से यह सिखतें हैं प्रियों कि जब एक किसान अपनी खेतों की ओर देखता है तथा अपने हाथों से दाखलता लगाई होती है वह उसकी डालियों को छांटता है और जो डाल सड़ जाती है या फल नहीं लाती है वे उसे दाखलता से अलग कर देता है; ताकि और डालियों को खराब न कर दे।


और जो डालियां फल लातीं हैं वह किसान उसे अधिक ध्यान से रखता है तथा उसको और छांट कर साफ सुथरा करता है ताकि वे और अधिक फलवंत बने। 


इसी प्रकार दोस्तों हमारा परमेश्वर भी हमार साथ व्यवहार करता है वह देखता है कि यदि मनुष्य यीशु मसीह के वचनों में बना रहे तो हमारा परमेश्वर उसे और निखारता है। वह उसे और मन नम्र ,वह दिन होना, धिरज धरना तथा अपने स्वभाव में चलना भी सिखाता है , ताकि हम परमेश्वर की निज संन्तान बन सके।


आगे तीसरे और चौथे वचन (यूहन्ना 15:3-4) मे लिखा है कि 3" तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो। 4 " तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते।"


यह वचन साफ - साफ दर्शाता है यदि हम परमेश्वर के वचनों का पालन ना करे या उसकि आज्ञा को न माने तो हम भी अपने जीवन में आशिष नहीं पा सकते क्योंकि एक मनुष्य का उसके रचने वाले परमेश्वर से अलग कोई अस्तित्व ही नहीं है।


आगे 5वें वचन में लिखा है दोस्तों  कि परमेश्वर ने कहा ; (यूहन्ना 15:5) "मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।


इस वचन में हमें यह सिखना है दोस्तों कि परमेश्वर हम से यही चाहता है कि हम परमेश्वर की आज्ञाओं में उसके वचनों में सदा खराई से बने रहें। तो ही हम परमेश्वर की निज संन्तान कि तरह आशीषित हो पाते हैं । परमेश्वर से हम अलग होकर उसकि आज्ञाओं को तोड़ कर हम अपने जीवन में सफल नहीं हो पाते ।


जी, हां दोस्तों मनुष्य अपने मन में बहुत सी कल्पनाएं तो करता है; परन्तु यहोवा मनो को जाचता और परखता है। क्योंकि मनुष्य की सोच में और परमेश्वर की सोच में जमीन और आसमान का अनतर है ऐसा बाइबल हमें बताती है। 


दोस्तों कभी - कभी हम भी अपने जीवन के बहुत से फैसले और निर्णय बिना परमेश्वर अगवाई के ही ले लेते हैं। और बात में पश्चताते हैं, परन्तु हमारा परमेश्वर दयालु है वे फिर भी हमें संभाल लेता है और हमें बिखरने या टुटने नहीं देता। परन्तु वह चाहता है की हम अपने हृदयों में उसका वचन सदा रखे, क्योंकि यदि उसका वचन हम में बना नहीं रहता तो हम अपने जीवन में आशाहीन और असंतुष्ट रहतें हैं।


आगे 6वें वचन में हम देखतें हैं (यूहन्ना 15:6) लिखा है ; "यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की नाईं फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं।"


दोस्तों इस वचन को हमें गभीरता से सिखना चाहिए क्योंकि यह उन मनुष्यों के विषय में हैं जो यीशु को जान बुझ कर स्विकार नहीं करते तथा उसका भय भी नहीं मानते। वह उन अन्य जातियों के समान होतें हैं जो मरने के पश्चात नरक के आग में डाले जाते हैं क्योंकि वे अपने पापो से कभी भी मन नहीं फिराते।


यीशु को उध्दार कर्ता के रूप में स्विकार नहीं करतें तो वे नरक की आग में डाल दिये जातें हैं। परमेश्वर हर एक मनुष्य को अपने जीवन में एक बार मन फिराने का अवसर अवश्य प्रदान करता है। क्योंकि वे दयालु हैं वह नहीं चाहता कोई भी आत्मा नास हो, परन्तु मनुष्य आप ही पाप में पडा़ रहना चाहता है। वे मन नहीं फिराता तो वे नरक की बारिश पर अन्ततः जीवन तक नरक आग में डाला जाता है।


आगे 7वें वचन में लिखा है दोस्तों (यूहन्ना 15:7)

" यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा।"  इस वचन में हमें यह सिखना है दोस्तों की परमेश्वर ने कहा ; यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरा वचन तुम में बना रहे, तो जो चाहो मांगो वह तुम्हारे लिए हो जाएगा।


यह साफ - साफ दर्शाता है की हम में परमेश्वर का वचन बना रहना चाहिए तभि हम आशीष पा सकतें हैं और यह स्वभाविक हैं दोस्तों कि जिस मनुष्य में परमेश्वर का वचन वह उसका भय बना रहता है वह सदा पवित्रताई से चलता रहता है तथा कभी किसी गलत वस्तुओं और गलत विचारों के अभिलाषाओं की मांग नहीं करता, जैसा अन्य जाती वे लोग नहीं जानते।


ऐसा भी नहीं है की यदि यहां लिखा है कि " तुम जो चाहो मांगो तो तुम्हें मिल जाएगा।"  बाइबल यह भी सिखाती है दोस्तों की हमें परमेश्वर कि ईच्छा में होकर प्रार्थना करनी चाहिए। अपनी आवश्यकताओं को उसकी ईच्छा में ही होकर मागंना चाहिए। फिर जो चाहे हमारे लिए समंभव है। यदि हम किसी की नाश की या किसी की हानि की या किसी भी प्रकार की लालच की चहत रखेगें तो हमारा परमेश्वर उसे कभी भी स्वीकार नहीं करेगा।


क्योंकि वेह एक मात्र पवित्र परमेश्वर है और वह चाहता है की उसकी निज प्रजा भी पवित्र बने जैसा वह पवित्र है। तो दोस्तों इन वचनों के द्वारा हमने जो सिखा है वे यही है की हमें अपनी जीवित खुदा के वचनों में वह उसकी आज्ञाओं में सदा हमें खराई से चलना चाहिए। यदि परमेश्वर का वचन आज्ञाओं से हट कर दाएँ बाएँ हो कर कुछ गलत कामों को या अपराधों को करते हैं तो हम भी नरक के आग में डाल दिएँ जाएंगे।


और मेरा सभी विश्वासी भाई - बहन से निवेदन है कि आप और हम सभी परमेश्वर में और गहरे होतें जाएं तथा अपनी हर समस्या या हर तकलीफ़ अपने पिता परमेश्वर से ही शेयर करे; तथा उसके वचनों में उसकी आज्ञाओं में सदा बने रहें। और रात दिन उसके वचनों पर चलने की कोशिश करें और पवित्र आत्मा की संगति करें। तभी हम परमेश्वर की निज प्रजा कहलाएंगे। तथा और भी बहुतों के लिए आशिष का कारन परमेश्वर हमें बनाएंगे।


जैसा उसने इस वचन में कहा भी " जो डाली मुझ में बनी रहती है, वे बहुत फल लाती है।" यही है वह फल कि हम बहुत सी आत्माओं को परमेश्वर का उद्धार का मार्ग दिखाएं तथा उन्हें भी बचाएं, जैसा  उसने हमें बचाया है दोस्तों। और यदि जीवन के किसी भी मोड़ पर हम पर कई समस्या आती है तो हमें घबराना नहीं चाहिए; वरन अपना पुरा विश्वास अपने परमेश्वर में स्थिर रखना चाहिए कि वे हमें हर समस्या से छुडा़ सकता है। क्योंकि की कभी - कभी दोस्तों परमेश्वर अनुमति देता है कि हमारे जीवन में परख आएं जिसके द्वारा हम नम्र और दिन भन जाएं, धिरज और संयम सिख पाएं तथा विपरीत परिस्थितियों में भी धन्यवादी बने रहें।


जैसे उसने वचन में कहा भी " जो डाली फलती है परमेश्वर उसे और छाटंता है की वे अधिक फलवंत हो। जैसे दोस्तों, एक सुनार सोना को सुन्दर आकार देने के लिए सहमति देता है कि वह आग में से होकर गुजरे तभी वे उसे एक सुंदर आकार दे पाता है। जैसा वह चाहता है। विलकुल उसी प्रकार हमारा परमेश्वर भी हमें छाटंता है, हमारी परिस्थितियों में हमको मुसकिलों से गुजरते हैं ताकि उसमें जीना सिख कर आगे को फलवंत हो पाएं। 


यही है परमेश्वर की फलवंत डाली वे हमें हर परिस्थिति में जीना और जीतना सिखाता है। वे और निखारना चाहता है क्योंकि हम स्वर्ग के परमेश्वर के निज संतान बन सके तथा उतम आशीषों को अंनत जीवन को पा सके  सर्वदा परमेश्वर में दोस्तों बने रहें। बस स्थिर रहें सदा परमेश्वर कि दाखलता कि फलवंत डाली बने रहें तथा उससे जुडे़ भी रहें तभी आप अंनत कानशल कि वारिस और पृथ्वी के अधिकारी बन जाएंगे जैसा परमेश्वर ने वचन में कहा भी " धन्य है वे जो मन के नम्र और मन के दिन हैं वे पृथ्वी के अधिकारी होगें।" 


परमेश्वर इन वचनों के द्वारा आपको आशीष दे।


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