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नए जीवन के राह पर -2 कुरिन्थियों 5:17 / way of new of life - Corinthians 5:17

नए जीवन के राह पर -2 कुरिन्थियों 5:17 / way of new of life - Corinthians 5:17

नए जीवन के राह पर -2 कुरिन्थियों 5:17 / way of new of life - Corinthians 5:17

" सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं।" 2 कुरिन्थियों 5:17


परमेश्वर के लहू से जब हम प्रभु यीशु के लहू के नीचे आ के हमारे पापों को कबुल करते हैं, हम नये जीवन में स्थित होते हैं, हम बतिस्मा के द्वारा प्रभु यीशु के साथ गाड़े जाते हैं। और उन्हीं कि तरह हम नये जन्म में प्रवेश करते हैं, अगर हम सोचें तो यह सोचें हम प्रभु कि एक बाड़ी हैं। उसमें हम एक बीज कि तरह रोपे जातें हैं, जो धीरे-धीरे हो कर बड़ा होता है। नया जीवन मिलता है तो हमारा सब कुछ बदल जाता है, हमारा पुरा मन, हमारी सोचने की ढ़ंग। हम जैसे लोगों के साथ जैसे व्यवहार कर रहे होते हैं जैसे लोगों के साथ रहते हैं।


हम रूटिन में जैसे रहते हैं पुरा दिन जैसे हमारा निकलता है सब कुछ बदल जाता है। क्योंकि अब हम परमेश्वर के हैं और हमारा ध्यान जो होता है परमेश्वर कि तरफ होता है। 


जब हम संसार में होते हैं तो शैतान का एक चुम्बक है जो हमें पकड़े हुए होता है पर जब हमारा चेहरा परमेश्वर की तरफ करते हैं तो  परमेश्वर का चुम्बक होता है वह हमें उसकी तरफ खिंचता रहता है। परन्तु शैतान के चुम्बक भी हमारे चारों ओर होते हैं जो अपने तरफ खिंचने कि कोशिश करते रहतें हैं। हम जितना पास परमेश्वर के जाएंगे उतना ही शैतान का जो  चुम्बक है वह कमजोर होता जाएगा।


तो इसी तरह जब हम नये जीवन में चलते हैं तो परमेश्वर के चुम्बक की तरफ हम खिंचे जाते हैं और जिस तरह से परमेश्वर थे, प्रभु यीशु जिस तरह का जीवन जिया, उसी तरह का जीवन हम जीना शुरू करते हैं। हमारा मन परमेश्वर कि ओर लगा हुआ रहता है और हमारा जीवन जो होता है वह भी जैसे प्रभु यीशु जी रहे थें, उसी तरह का जीवन हम जीने की कोशिश करते हैं।


हमारी सारी कामों से हम परमेश्वर को महिमा देते हैं। पहले तो हम ऐसे थे जो खुद ही की बातों को हम हांकते रहते थें, खुद ही का जीवन खुद ही के लिए जीते थें, परन्तु अब परमेश्वर के लिए जीतें हैं। पहले हम सारे सोसल मीडिया पर हम अपने ही फोटो लगाया करतें थें, अपनी ही बातें करते थें कि हमने क्या किया, हम क्या कर रहे हैं बस पुरा दिन खुद ही के लिए जीते थें।


परन्तु जब प्रभु यीशु ने हमें चुन लिया तो हम परमेश्वर के हो जाते हैं। हम वचन की बातें करते हैं, हम परमेश्वर के वचनों कि गेहराईयों को समझते हैं हम परमेश्वर के लोगों के साथ जुड़े रहते हैं और हमारा जीवन जो होता है , जो हम रूटिन में कर रहे होते हैं उससे पुरा अलग हो जाते हैं। हम लोगों से प्यार करना सिखते हैं,  जो हमारा बुरा कर रहे होते हैं उनसे भी हम प्यार करते हैं। हम धिरज सिखते हैं , पहले तो जल्दी - जल्दी में सबकुछ करना होता था। किसी भी रास्ते से कुछ न कुछ पा लेना होता था परन्तु अब हम धिरज से काम करते हैं। 


परमेश्वर कि बाट देखते हैं, जिस तरह से परमेश्वर अपना दरवाजा खोलता है, उस तरह से उसी तरफ जाने की कोशिश हम करते हैं। जैसे - एक नया बीज कैसा होता है, नयी चीज कैसी होती है , उसमें दाग नहीं होता एकदम चमकती हुई रहती है। जो एक दम ताजा होती है,उसी तरह का जीवन हमारा भी हमारा हो जाता है।


हमारे मां-बाप हमारे आस पड़ोस के सब लोग देखते हैं, कि यह तो पुरा बदल गया है। प्रार्थना का जीवन हम में प्रवेश करता है क्योंकि पुरे दिन जो हम समय बर्बाद करते हैं, गेम खेलते हैं और इधर उधर जाते हैं। अपने दोस्तों के साथ समय व्यतीत कर रहे होते हैं। हमारा जीवन अब तक बर्बादीयों में होता है पर अब घुटनों पर आना सिख गये हैं। परमेश्वर के साथ समय बिताना हम सिख गये होते हैं, प्रार्थना में रहते हैं परमेश्वर कि बातों की तरफ अपना ध्यान हमने फेर दिया होता है।


जब भी हम लोगों को छमा करते हैं तब और भी ज्यादा हम परमेश्वर के प्यार को हम महसूस कर पाते हैं। क्योंकि हम बार-बार पाप कर के हम परमेश्वर के पास आये, कितनी ही बार हमने परमेश्वर के बिरूध गुनाह किया। फिर भी परमेश्वर ने हमें माफ किया है और जब हम किसी को माफ करते हैं तो वहीं फिल हमें आपस आती है कि जब परमेश्वर ने हमें कितनी बार ही माफ करता है तो हम लोगों को हमारे लिए माफ करना कितना मुश्किल होता है। 


हम जो भी कर रहे होते हैं, उसमें पहले हम बातों को गलतियां समझते है, हम उसको भुल समझकर टाल देते, पर जब हम नया जीवन में प्रवेश करते हैं तब पाप को हम पाप ही गिनते हैं, व्यविचार ही गिनते हैं। किसी की तरफ बुरी नजर करते हैं तो उस चीज को हम व्यविचार ही गिनते हैं, उसको हम भुल है या हमारी कोई गलती है ऐसा नहीं समझते। हम परमेश्वर के वचन कि तरफ और ज्यादा सतर्क हो जाते हैं और ज्यादा जागरूक हो जाते हैं। 


परमेश्वर के मन को हम ओर करीब से जानने लगते हैं क्योंकि अब तो हम परमेश्वर के बाड़ी के लोग हैं। परमेश्वर के बाडे में हम रहते हैं और परमेश्वर जो हमारा खुराक है जो परमेश्वर हमें सिंचता है, जो वह हमें पानी देता है, जो हमें बड़ा करता है। वह हमारा पीता है, पहले तो हम दूसरों की चिजों को देखकर आकर्षित हो जाते थे, तो उसको गलत समझ कर उसे छोड़ देते थे पर अब समझ आता है कि परमेश्वर की आज्ञा है की तुम्हारी पड़ोसी की चिज़ से तु आकर्षित न हो वह पाप है, अब हम समझते हैं।


यह कुछ नया जीवन है, यह हम समझने लगते हैं। जैसे-जैसे हम आगे जाते हैं वैसे-वैसे बहुत सारी चीज़ें हम में एड होती जाती है। जैसे हम पहले तो एक बीज होते हैं, जो जमीन के अंदर गाड़ा हुआ होता है, फिर धीरे-धीरे कर के वह एक पेड़ बन जाता है पर यह सारी प्रक्रिया बहुत धीरे-धीरे होती है और जिसमें कोई आवाज नहीं होती है। धीरे-धीरे वह बीज फुटता है उस में से एक छोटा पेड़ निकलता है और फिर उसमें बड़ा पेड़ होता है और उसमें फुल आते हैं। उसमें फल आते हैं और उस पौधे को धीरे-धीरे कर के बड़ा वृक्ष हो जाता है। 


पुरी प्रकृरिया के दौरान कोई भी आवाज नहीं होती, पर जब वह बड़ा होता है तब लोग उसको देखते हैं, उसके फलों के द्वारा वे पहचानते हैं कि यह कौन सा पेड़ है। केवल पत्तों कि तरह से  या केवल फुलों कि तरफ से और उसमें जो फल लग होते हैं उस से लोग पहचान जाते हैं  कि यह किस चीज़ का फल है यह किस चीज़ का वृक्ष है। 


यह एक धीरज का काम है जैसे अगर हम प्रभु यीशु का जीवन देखें तो 30 सालों तक प्रभु यीशु क्या किया, उसकी बहुत कम जानकारी है हमारे पास, पर 30 साल तक प्रभु यीशु अपने घर में अपने मां बाप के साथ रहते थें और जिस तरह से मां बाप के साथ रहना चाहिए जिस तरह से कुटुम्ब में रहना चाहिए, वह प्रभु यीशु ने पुरी तरह से अनुभव किया और ऐसा नहीं है कि जब प्रभु यीशु ने सेवा चालू करी तभी परमेश्वर उससे ख़ुश थे।


परन्तु जब पहली बार प्रभु यीशु लोगों के मध्य में आते हैं तब परमेश्वर उनके लिए बोलता है की यह मेरा प्यारा पुत्र है और मैं इससे खुश हूं  जबकि उन्होंने सेवकाई अपनी चालू भी नहीं करी। हम भी आज कोई जल्दी नहीं करें, प्रभु यीशु 30 सालों तक अपने सही समय के लिए इंतजार करते रहें जब सही समय आया परमेश्वर ने उनके लिए कहा; कि यह मेरा प्यारा पुत्र है और इससे मैं प्रसन्न हूं।


परमेश्वर हमें नया जीवन दे के तैयार करता रहता है कि जिस काम के लिए उन्होंने हमें बुलाया है उस काम के योग्य हमें बनाते रहते हैं यह परमेश्वर का धीरज है, धीरज से काम लें कहीं दौड़ा-दौड़ ना करें कहीं भागा - भाग न करें, कहीं भी जल्दी न करें कि परमेश्वर के लिए काम करना है, परमेश्वर अपने समय पर आपको जरूर बुलाएगा क्योंकि हम चुनें गये हैं, तो चुने हुए के लिए परमेश्वर ने जरूर काम रखा है। 


योग्य समय की जरूरत है, सही समय पे परमेश्वर खुद हमें खिंच के ले जाएगा। बस परमेश्वर के अधीन रहें, यह न हो की हम उस बाड़े में से बाहर निकल जाएं परंतु परमेश्वर को सम्पूर्ण रिती से अधीन हो जिससे की वह हमारे में से फल ले के आए। फल आना, काम करना हमारा काम और परमेश्वर अपनी सामर्थ्य दे के हमें फल लाने में हमें मदद करेगें ।


परमेश्वर हमें कब मदद करेगा जब हम परमेश्वर के साथ जुड़े होगें, जब उसके बाड़े में होगें। जब हमारा जीवन नया जीवन पाने के बाद नया जीवन रहा होगा तब, क्योंकि कई बार हम नया जीवन पाने के बाद भी उसी जगत में वापस जाने कि इच्छा रखतें हैं, उसी तरह के काम करते हैं। पहले तो हम दोनों के अन्तर को समझ सकते हैं कि कौन सा पुराना है और कौन सा नया है, परन्तु जैसे-जैसे समय बिताता जाता है, जैसे-जैसे हम और आगे - आगे बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे हम कई चीजों में समझौता करने लगते हैं।


हम नया जीवन और पुराना जीवन में जो अन्तर होता है उस अन्तर को बहुत बारीक कर देते हैं, इसलिए परमेश्वर हमें लम्बें समय तक तैयार करता है जिससे कि हम जब भी दूसरे लोगों के पास जाएं, जगत में जाएं तब हमारा नया जीवन है वह लोगों को नजर आये। यह नहीं कि हम में और जगत के लोगों में कोई अन्तर न हो ऐसा न हो, इसलिए परमेश्वर हमें धीरज देता है धीरज से परमेश्वर हमें तैयार करता है और अपने काम के लिए क्योंकि परमेश्वर का काम करने के लिए वह पवित्रता जरूरी है। 


परमेश्वर का काम करने के लिए वह धीरज, वह प्यार, वह सहनशीलता जरूरी है। इसलिए परमेश्वर हमें फल देने से पहले, हमारे में से फल निकालने से पहले, हमें काम देने से पहले परमेश्वर बड़ी शान्ति से हमारे से काम लेता है। परमेश्वर बड़ी शान्ति से हमारे जीवन में काम करता है। हमारा जीवन इतना पका कर देता है की कभी वापस हम शैतान के चंगुल में फस न जाए। कभी भी हम वापस अपने पुराने जीवन में घुस न जाए, कभी वापस हम उसी तरह का जीवन जीने न लगें, इसीलिए परमेश्वर ने हमें चुन लिया है, तो चूनो हूओ की तरह अपना जीवन जी रहें हैं कि नहीं वह हर रोज हम जांचते रहें, हर रोज हम देखते रहें पुराना जीवन  में वह जो अन्तर था, जो भेद था जो दुरियां थी वह आज भी है क्या। 


हर रोज सुबह, हर रोज प्रभु यीश के लहू में गुजर के अपने आप को हर रोज नया करें, जिससे कि दिन भर में जो भी हम बोलें, जो भी हम काम करें, जिससे भी हम व्यवहार करें, जिससे भी हमारी बात चीत हो जो भी हमारें विरोध में हो उन सभी से हम प्यार से, मोहब्बत से और जिस तरह से प्रभु यीशु जीये, उसी तरह से हम जी पाएं। इसके लिए हम प्रभु कि कृपा ग्रहन कर पाएं। सुबह का समय प्रभु यीशु के साथ बिताना बहुत जरूरी है, क्योंकि उसके बाद तो हम लोगों के साथ, जगत के साथ और जो बातें बाहर है वहां पर हम जाने वालें ही हैं, परन्तु परमेश्वर कि कृपा में आने के बाद पवित्र हो होने के बाद ही हम बाहर निकलें यह ज्यादा जरूरी है।


परमेश्वर ने हमें काम दिया है और उस काम के योग्य हमेशा बने रहें, परमेश्वर की हुजूरी में खड़े रहने कि योग्य हमें हमेशा बने रहें, तब ही हम फल लाने के योग्य रहेगें। तभी परमेश्वर कि कृपा से हमारे जीवन में काम होगा, यह नहीं कि हम जोर लगा के बस हर रोज दौड़ते रहें और बल लाने के लिए हम जुजतें रहें। परन्तु जब हम परमेश्वर के अधीन होगें, परमेश्वर कि कृपा में रहेंगे। जब हम नहीं परन्तु परमेश्वर खड़ा रहेगा तब फल जरूर जरूर जरूर आएंगे।


फिर से अपने आप को नये जीवन के लिए समर्पित कर दें, प्रभु अपना काम जरूर करेंगे। 


परमेश्वर आपको आशीष।

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