यह वाक्य एक दुखद सच्चाई को उजागर करता है। आज जब जीवन की चाहत, शांति की तलाश और आत्मिक तृप्ति की आवश्यकता चारों ओर स्पष्ट दिखाई देती है, तब भी लोग उस जीवन के स्रोत — प्रभु यीशु मसीह — के पास आने से कतराते हैं। क्यों?
जब बाइबल कहती है कि "परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है, और यह जीवन उसके पुत्र में है" (1 यूहन्ना 5:11), तब लोग उस जीवन को क्यों नहीं अपनाते? इस लेख में हम उन सात मुख्य कारणों पर विचार करेंगे जिनके कारण आज भी बहुत से लोग जीवन पाने के लिए यीशु के पास नहीं आते।
1. सोचते हैं कि हमें जीवन की आवश्यकता नहीं है
बहुत से लोग यह सोचते हैं कि वे पहले से ही ‘जीवन’ जी रहे हैं — नौकरी है, परिवार है, संपत्ति है, कुछ हद तक सुख-सुविधा भी है। उनके लिए जीवन का अर्थ केवल सांस लेना, खाना-पीना, कमाना और परिवार पालना है। आत्मिक जीवन उनके विचार में नहीं आता।
आज के यांत्रिक जीवन में, आत्मा की भूख अनदेखी रह जाती है। जब तक व्यक्ति यह नहीं समझता कि उसे आत्मिक जीवन की आवश्यकता है — तब तक वह यीशु की ओर नहीं देखता।
2. सोचते हैं कि हम खुद ही जीवन प्राप्त कर सकते हैं
बहुत से लोग सोचते हैं कि अगर वे अच्छे काम करते हैं, दान-पुण्य करते हैं, मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा जाते हैं, तो वही उनके मोक्ष का रास्ता है। उनके अनुसार, यदि वे "अच्छे इंसान" हैं, तो उन्हें किसी मसीहा या उद्धारकर्ता की जरूरत नहीं।
आत्मनिर्भरता की भावना अक्सर मनुष्य को परमेश्वर की ओर झुकने नहीं देती। वह समझता है कि वह खुद ही सब कुछ कर सकता है। लेकिन आत्मिक दृष्टि से हम सब निर्बल हैं — और यीशु ही हमारी आशा हैं।
3. अपने लिए अन्य विकल्प चुन लेना
कुछ लोग यीशु के स्थान पर अन्य गुरुओं, देवी-देवताओं, विचारधाराओं या सांसारिक वस्तुओं को अपना सहारा बना लेते हैं। कोई धन में, कोई रिश्तों में, कोई कर्मकांडों में, तो कोई दर्शन-शास्त्रों में जीवन ढूँढता है।
बाइबल इसे मूर्ति-पूजा कहती है — जब हम परमेश्वर की जगह किसी और को बैठा देते हैं।
“तू मेरे सिवाय किसी और को ईश्वर करके न मानना।” (निर्गमन 20:3)
लोग अक्सर वह चुनते हैं जो उनके मन को अच्छा लगता है, न कि वह जो आत्मा को जीवन देता है।
4. यीशु के विषय में गलत जानकारी
यीशु का सुसमाचार कोई विदेशी बात नहीं है — यह संपूर्ण मानवजाति के लिए है। परन्तु जब तक लोग सही जानकारी नहीं पाते, वे भ्रम में रहते हैं।
5. पारिवारिक और सामाजिक बाधाएं
यीशु यह नहीं कहते कि हमें अपने परिवार से प्रेम न करें — बल्कि यह कि जब जीवन और उद्धार का प्रश्न हो, तब हमें साहसपूर्वक उन्हें चुनना चाहिए जो सच्चा है।
6. जीवन में पाप – एक अदृश्य रुकावट
पाप सिर्फ गलत काम नहीं, बल्कि परमेश्वर से दूरी का कारण है। जब मनुष्य जानता है कि उसका जीवन गंदगी और दोषों से भरा है, तो उसे यीशु के पास आने में शर्म और भय लगता है। वह डरता है कि अगर यीशु के पास गया, तो उसे अपने जीवन को बदलना पड़ेगा।
यीशु पापियों के पास आए, न कि धर्मियों के पास। उनका प्रेम क्षमा देने वाला है। परन्तु जब तक पाप स्वीकार नहीं किया जाता, उद्धार को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
7. किसी ने यीशु के विषय में बताया ही नहीं
अगर हम मसीही जन अपने आस-पास के लोगों को यीशु के बारे में नहीं बताएंगे, तो वे जीवन के स्रोत से अनभिज्ञ ही रह जाएंगे।
निष्कर्ष:
यीशु मसीह ही जीवन का स्रोत हैं। वे न केवल पापों की क्षमा देते हैं, बल्कि हमें आत्मिक शांति, उद्देश्य और अनन्त जीवन प्रदान करते हैं। फिर भी, लोग उनके पास नहीं आते — कभी भ्रम के कारण, कभी भय के कारण, कभी सामाजिक दबाव के कारण, और कभी अपनी आत्मिक आवश्यकता को न समझने के कारण।
अब प्रश्न यह है — क्या हम यीशु के पास आएंगे? और क्या हम दूसरों को उनके पास लाने का प्रयास करेंगे?
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