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दशमांश क्यों देना चाहिए ? Benefits Of Giving Tithes And Offering

दशमांश क्यों देना चाहिए ? Benefits Of Giving Tithes And Offering

दशमांश


हमारी आराधना का एक भाग है परमेश्वर को भेंट और दशमांश देना। प्रभु को जो सही रीति से प्रेम करते हैं, वे ये बात बिना बोले करते है। बाइबल में पुराने नियम में दशमांश के बारे में स्पष्ट रूप में लिखा हुआ है। अब्रहाम और याकूब ने अपने जीवन में निर्णय लिया कि वो अपना दशमांश प्रभु को देंगे। इन लोगों के भेंट और दशमांश देने के कारण बहुत बड़ा बदलाव उनको दिया परदेश में तम्बू में रहते हुए, घूमने फिरने वाले लोग दशमांश देने में अपने कंगालपन के समय पर भी प्रभु को देने में कमी नहीं किया। वो बहुत आनन्द से और खुशी से देते थे। 


इसलिए उनको और उनके बच्चों को प्रभु ने धरती में सबसे उत्तम देश कनान अथवा इस्राएल देश दिया। इस्राएल का जो नाम है वो याकूब है। इस्राएल लोग बुद्धिमान और शक्तिशाली और आशीषित होने का कारण यही है फिर प्रभु ने इस्राएल के लिए एक कानून बनाकर दिया कि तुम लोगों को अपना दशमांश देना है लेकिन कई लोग दशमांश देने में पीछे हुए वो लोग अपने दशमांश का पैसा खुद अपने पर खर्च करने लगे। उन्होंने परमेश्वर को देने वाले चीजों की चोरी की। उन लोगों को प्रभु ने कहा- तुम लोग दशमांश और भेंट नहीं देने से परमेश्वर को धोखा देते हो इसलिए तुम पर बड़ा श्राप पड़ा है अगर हम अपना पूरा दशमांश प्रभु को नहीं देंगे तो आप आर्थिक तौर पर आशीषित नहीं होंगे।


प्रभु के वायदे को आप देख लो। प्रभु कहता है अगर तू अपना दशमांश पूरा मेरे पास लेकर आते हो तो मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिए खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूँ। प्रभु ने कहा इस विषय पर तुम मुझे परखकर देखो तुम्हें नाश करने वाला और तेरी सम्पत्ति को नाश करने वाले को ऐसा घुड़कूंगा प्रभु के यह आशीष होने के कारण सारे जाति के लोग तुम्हें धन्य कहेंगे प्रभु के मुंह से निकली हुई यह वाणी है।


नया नियम हमें सिखाता है दशमांश से ज्यादा तुझे देना है। नये नियम के विश्वासी लोग प्रभु के प्रेम के कारण अपनी सम्पत्ति भी बेचकर प्रभु के पास लेकर आये। इस कारण उन लोगों ने प्रभु की आशीष भी पायी दशमांश देना, भेंट चढ़ाना आपकी आशीष के लिए अच्छा है नहीं तो आप कितना भी उपवास करें. प्रार्थना करें, आपको आर्थिक आशीष मिलना बहुत मुश्किल होगा। इसलिए आप अपना पूरा भेंट और दशमांश प्रभु के भवन में लेकर आयें।


दशमांश का अर्थ 100 रुपये, 200 रुपये, 500 रुपये यह बात नहीं है। आपके महीने की तनख्या कितनी भी हो, उसमें 10 में एक भाग को दशमांश बोलते हैं। इसका मतलब 1000 का 100, 5000 का 500, 20,000 का 2000 और आपको जो खेती-बाड़ी का फल भी 10 का एक हिस्सा प्रभु का है। आपने यह देना है।


आपको जो वचन सिखाते हैं आपके लिए प्रार्थना करते हैं, आपको एक आत्मिक तौर पर चरवाहे के रूप में देखभाल करता हो, उस पासवान को ही देना है। नहीं तो आप जिस चर्च में जाते हैं वहीं पर आपको देना है। यह जो धन है चर्च के खर्च के लिए सम्भालना है। इसके अलावा आपने पासबान कोई सांसारिक काम करें परमेश्वर नहीं चाहता है। पासबान और उनके परिवार का खर्चा भी इसी से होता है। यह प्रभु के द्वारा बनाया हुआ कानून है। कुछ लोग यह सोचते हैं चर्च को और पासवान को पैसा अमेरिका से और बाहर देश से आता है। आप इस बात को अच्छी तरह से समझना है कि अमेरिका में और बाहर देश में धन का पेड़ नहीं है। सभी अपनी भाग-दौड़ और मेहनत के साथ काम करने वाले हैं। वो अपनी मेहनत का दशमांश निकालकर अपने चर्च में देते हैं इसलिए वो लोग आशीष पा रहे हैं लेकिन हम भारत के लोग देने के लिए नहीं चाहते लेकिन लेने के लिए चाहते हैं।


“दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।"


क्या धर्म बदलने के लिए पैसा आता है ?


जी नहीं, यीशु मसीह ने कभी भी अपना धर्म नहीं बनाया। धर्म के लिए कोई नाम नहीं दिया। उसने धर्म का प्रचार नहीं किया, लेकिन वो धर्म और धर्म उपदेशक के विरोधी थे। उसने धर्म के विरुद्ध प्रचार भी किया। धर्म के लोगों ने यीशु मसीह को सताया और सूली पर चढ़ाया। प्रभु ने कभी भी किसी को नहीं बोला कि तुम धर्म का प्रचार करो। ये प्रभु का पक्ष स्पष्ट है।


प्रभु का प्रचार और सेवा, उपदेश यही था। पाप और दुनियादारी से मन फिराओ, पवित्र बनो! प्रभु ने अपने चेलों को भी यही शिक्षा दी कि जाके सुसमाचार का प्रचार करो! जो विश्वास करे वो उद्धार पाएगा! तो लोगों को यह सच्चाई बोलना परमेश्वर चाहता है ताकि कोई भी नरक में न जाए बल्कि स्वर्ग में जाए।


जिनको परमेश्वर से प्रेम है। परमेश्वर के वचन को मानता है। वही लोग अपनी मेहनत का एक भाग इसके लिए दान देते है। कुछ लोग अपने बच्चे, अपनी सम्पत्ति भी दान देते हैं। इसे परमेश्वर के राज्य की बढ़ोतरी के लिए सम्भालते हैं। मैंने पहले आयत के अंदर लिखा है। कोई भारत देशी हो विदेशी हो रुपया जमीन खोद के और पेड़ से तो नहीं मिलता। बल्कि सब अपनी बुद्धि और पसीना बहाकर काम करने से मिलता है। आप एक लालची और देने वालों के विरोधी न बनें। आप भी देने वाले बनें। आपका ये दान प्रभु के सेवक लोग और उसके राज्य की बढ़ोतरी के लिए सम्भाला जाएगा। विदेशी लोग दान देना अच्छा समझते हैं। लेकिन हम स्वदेशी लोग देना पसन्द नहीं करते हैं, लेना चाहते हैं और दूसरों को मिलने से हम जलन रखते हैं। बाइबल हमें समझाती है कि तुम लेनेवाले न बनो बल्कि देने वाले बनो। इससे ज्यादा जानकारी आपको बाइबल से ही मिलेगी।


यीशु मसीह न अंग्रेजों का है न भारत का है, न नेपाल का और न अमेरिका का है, लेकिन यीशु सारी दुनिया का प्रभु है। उसका अंतिम हुकम है-जाओ सारे संसार के लोगों को सुसमाचार सुनाओ। इसीलिए प्रभु के प्रेमी प्रचारक लोग अपना देश छोड़ के अलग-अलग देशों में जाकर प्रचार करते हैं। जो विश्वास करे वो उद्धार पाएगा। जो विश्वास नहीं करता वो दोषी ठहराया जाएगा। उसका अन्त नरक ही होगा। लेकिन दुख की बात है हमारे भारत देश में प्रचारक और विश्वासियों को सताया जाता है। सताने वाला सच्चाई नहीं जानता इसलिए उनके पाप और अपराधों को हम क्षमा करें। उनके लिए प्रार्थना करें।


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