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परमेश्वर का वचन - एक दूसरे के प्रत्ति कर्त्तव्य

परमेश्वर का वचन - एक दूसरे के प्रत्ति कर्त्तव्य
परमेश्वर का वचन


एक दूसरे के प्रत्ति कर्त्तव्य


प्रेरित पोलुस लिखते हैं कि मसीही जीवन कैसा जीना चाहिए, विशेष कर दूसरों के साथ प्रेम का सम्बन्ध रखते हुए। और यही परमेश्वर की सेवा, और मसीहियों का कर्त्तव्य है।


रोमियों 13:8 - 14


8 आपस के प्रेम से छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो; क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है।


9 क्योंकि यह कि व्यभिचार न करना, हत्या न करना; चोरी न करना; लालच न करना; और इन को छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। 


10 प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिये प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है॥ 


11 और समय को पहिचान कर ऐसा ही करो, इसलिये कि अब तुम्हारे लिये नींद से जाग उठने की घड़ी आ पहुंची है, क्योंकि जिस समय हम ने विश्वास किया था, उस समय के विचार से अब हमारा उद्धार निकट है। 


12 रात बहुत बीत गई है, और दिन निकलने पर है; इसलिये हम अन्धकार के कामों को तज कर ज्योति के हथियार बान्ध लें। 


13 जैसा दिन को सोहता है, वैसा ही हम सीधी चाल चलें; न कि लीला क्रीड़ा, और पियक्कड़पन, न व्यभिचार, और लुचपन में, और न झगड़े और डाह में। 


14 वरन प्रभु यीशु मसीह को पहिन लो, और शरीर की अभिलाशाओं को पूरा करने का उपाय न करो।


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