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उपवास के बारे में बाइबल वचन | Bible Verses About Fasting

उपवास के बारे में बाइबल वचन | Bible Verses About Fasting

उपासना पर विचार करते समय, हमारे मन में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है - क्या हम परमेश्वर के पास और उसके प्रति अधिक गहरी सम्पर्क स्थापित करने के लिए क्या कर सकते हैं? इसके जवाब में, शास्त्रीय साहित्य में हमें उपासना के महत्वपूर्ण एकांगी विधि के बारे में बताया जाता है - उपवास। उपवास, जो अपनी प्रकृति में भिन्न हो सकता है, मनुष्य को शारीरिक, आध्यात्मिक, और मानसिक रूप से शुद्ध करने का एक विधान है। बाइबल में भी उपवास के विषय पर विशेष महत्व दिया गया है।


यहां हम आपके सामने कुछ ऐसे पवित्र वचन प्रस्तुत करने जा रहे हैं जो उपवास के महत्व को बाइबल में प्रकट करते हैं। इन वचनों का पालन करके हम अपनी आध्यात्मिक उन्नति में एक पवित्र और मजबूत अभ्यास का अनुभव कर सकते हैं।


उपवास को बाइबल में "निर्वाचित" कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है "अपने आप को आराम करने के लिए अलग करना।" यह एक स्वयंसेवी और स्वयं नियंत्रित क्रिया है जो हमें परमेश्वर के सामीप्य की ओर ले जाती है। बाइबल में कई प्रमुख व्यक्तियों ने उपवास का उल्लेख किया है और इसके महत्व को व्यक्त किया है। यह उनकी अनुभूति और उनके युगों के संदेश का प्रतीक है।


एक मशहूर उदाहरण है बाइबल में लिखा हुआ मत्ती 4:2, जहां यीशु एक चालीस दिनों तक उपवास करते हैं और उसके बाद भटकते हुए दुष्ट शैतान के सामर्थ्य को प्रमाणित करते हैं। इससे हमें उपवास का महत्वपूर्ण सन्देश मिलता है कि यह हमें भारी आध्यात्मिक युद्धों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।


एक और अद्भुत उदाहरण है दानिय्येल 9:3, जहां दानिय्येल उपवास और प्रार्थना करने के लिए चार्लोन विन्यास का चुनाव करता है। उनका उपवास उनकी देवता की परम आस्था और प्रार्थना को ेश करता है और उन्हें उसके आदेशों का पालन करने की शक्ति प्रदान करता है। दानिय्येल उपवास के माध्यम से अपनी विश्वास प्रणाली को सुदृढ़ करते हैं और अपने ईश्वर के साथ एक साथीत्व का अनुभव करते हैं।


इसके अलावा, बाइबल में मत्ती 6:16-18 में भी उपवास के विषय में चर्चा की गई है। यहां कहा गया है कि जब हम उपवास करें, तो हमें अपने आप को न दिखाएं और अपने पिता के योग्य होने के लिए चुपचाप रहें। इसका अर्थ यह है कि हमें उपवास को ध्यान और समर्पण के साथ करना चाहिए, और उसे खुद की गरिमा और स्वार्थ की प्रदर्शनी के लिए नहीं इस्तेमाल करना चाहिए। इस तरीके से, हम परमेश्वर के सामीप्य की ओर बढ़ते हैं और आत्मिक अनुभव में गहराई प्राप्त करते हैं।


उपासना के माध्यम से उपवास हमें आध्यात्मिक उन्नति, स्वयं नियंत्रण और परमेश्वर के साथ गहरा सम्पर्क प्रदान करता है। यह हमें शरीर, मन और आत्मा के अवयवों की शुद्धि करने में सहायता करता है और यह हमें अपनी अहमियतों और भौतिक आकारों से दूर ले जाता है और हमें आत्मीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीने की प्रेरणा देता है। उपवास एक अवसर है जब हम अपने भोजन और प्रकृति के नियमों से अलग होकर परमेश्वर के पास आने का समय निकाल सकते हैं। यह हमें संयम, सामर्थ्य और सहनशीलता विकसित करने में मदद करता है।


बाइबल में उपवास का अन्य एक महत्वपूर्ण उदाहरण है नेहेमायाह 9:1, जहां लोगों ने उपवास किया और पवित्रता की व्रत प्रारंभ की। यह उनकी पवित्रता के प्रतीक रूप में था और उन्हें उनके पुराने अवसरों को याद करने और उन्हें अपने जीवन में फिर से लाने का समय दिया। इससे हमें यह सिखाया जाता है कि उपवास हमें प्राकृतिक और आध्यात्मिक आयामों को संतुलित रखने का माध्यम प्रदान करता है और हमें अपनी पूर्वाग्रहों, बुराईयों और पापों से मुक्ति प्राप्त करने में सहायता करता है।


इस प्रकार, बाइबल में उपवास का महत्व बताते हुए हमें यह समझाया जाता है कि उपवास एक आध्यात्मिक साधना है जो हमें परमेश्वर के साथ संबंध स्थापित करने, अपने आप को शुद्ध करने, और आध्यात्मिक जीवन को स्थायी बनाने में मदद करता है। यह हमें सम्पूर्ण आत्मिक तरीके से बढ़ने और आत्मा के गहराई में समर्पित होने की सामर्थ्य प्रदान करता है।


बाइबल में दर्शाया जाता है कि उपवास विभिन्न उद्देश्यों के साथ किया जा सकता है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभों का उपासना रूपी स्रोत हो सकता है। इससे हमारा मन शांत होता है, अंतरंग अभिवृद्धि होती है, और हम अपने आप को प्राकृतिक तत्वों से अलग करके आत्मा की ओर समर्पित हो सकते हैं।


उपवास के बारे में बाइबल वचन | Bible Verses About Fasting

यहां बाइबल में कुछ और उद्धरण हैं जो उपवास के महत्व को प्रकट करते हैं:

  • परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुंह धो। ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने; इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा॥ मत्ती 6:17-18
  • वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी। लूका 2:37
  • उन दिनों मैं, दानिय्येल, तीन सप्ताह तक शोक करता रहा। उन तीन सप्ताहों के पूरे होने तक, मैं ने न तो स्वादिष्ट भोजन किया और न मांस वा दाखमधु अपने मुंह में रखा, और न अपनी देह में कुछ भी तेल लगाया। दानिय्येल 10:2-3

ये उद्धरण दिखाते हैं कि उपवास धार्मिक और आध्यात्मिक विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें आत्मसंयम, नियंत्रण और परमेश्वर के साथ संवाद के लिए समय निकालने की प्रेरणा देता है। इससे हम अपने आप को और अपने आपके परमेश्वर को अधिक समझने और पास आने का अवसर प्राप्त करते हैं।


उपवास धार्मिक और साधारण जीवन के दौरान एक महत्वपूर्ण अंग है, जो हमें अपनी साधना और आत्मिक योग्यता में सुधार करने में सहायता करता है। यह हमें संयम, अनुशासन, और आत्म-नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है और हमें आत्मिक विकास की ओर अग्रसर करता है। इसलिए, उपवास एक मत्वपूर्ण तरीके से हमारे जीवन को परिवर्तित कर सकता है। यह हमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने में मदद करता है। यह हमें अपनी इच्छा और अभिप्रेतताओं को नियंत्रित करने का सामर्थ्य प्रदान करता है और हमें आध्यात्मिक संवाद में गहराई प्राप्त करने की क्षमता देता है।

यद्यपि उपवास खाद्य संबंधी सीमाओं को पालन करने का अर्थ रखता है, लेकिन इसका अभिप्रेतताओं से परे एक आध्यात्मिक अर्थ भी होता है। यह हमें शांति, संतुलन और आनंद की अनुभूति प्रदान करता है और हमें स्वयं को पुनः प्रस्तुत करके उच्चतम आत्मा के साथ संबंध स्थापित करता है।

इसलिए, उपवास अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक साधना में एक महत्वपूर्ण साधना है जो हमें अपने स्वयं के भीतरी आदर्शों के साथ मिलकर ऊँचा जीवन जीने का मार्ग प्रदान करता है। यह हमें संपूर्णता और समरसता की अनुभूति प्रदान करता है और हमें अपने परमेश्वर और अपने आपसे गहरी प्रेम और्द्ध करता है। यह हमारे मन, शरीर और आत्मा को एकीकृत करता है और हमें अपने भगवान के साथ एकता और सम्पर्क की अनुभूति प्रदान करता है।

उपवास धार्मिक लेखों और आध्यात्मिक ग्रंथों में भी उच्च महत्वपूर्णता रखता है। इससे हम अपने अंतरंग और बाह्य जीवन को शुद्ध और उदार बनाने के लिए एक आदर्श बना सकते हैं। यह हमें अपनी भक्ति और निष्ठा को बढ़ावा देता है और हमें आत्म-संयम, विनय और सेवा के मार्ग पर ले जाता है।

उपवास के माध्यम से हम अपनी अन्तरात्मा को जागृत करते हैं और अपने जीवन को आध्यात्मिकता, सामरिकता और उदारता की दिशा में निर्देशित करते हैं। यह हमें समस्याओं का सामना करने और परिस्थितियों को समझने की क्षमता प्रदान करता है और हमें अपने जीवन के उद्देश्य और महत्व को पहचानने में मदद करता है।

उपवास के माध्यम से हम अपने आदर्शों, मूल्यों और धार्मिक सिद्धांतों की पुनर्निर्माण करते हैं। यह हमें अपने परमेश्वर के प्रति आदर्श भावना को प्रकट करने का अवसर देता है और हमें उच्चतम आदर्शों की ओर प्रेरित करता है। यह हमें अपनी आत्मिक प्रगति और पूर्णता की ओर ले जाता है।

उपवास हमें संयम, आत्म-नियंत्रण और सामरिकता की प्राप्ति में सहायता करता है। जब हम उपवास करते हैं, तो हम अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करते हैं और उन पर वश में रहते हैं। यह हमें अपने वाणी, विचार और क्रियाओं को पवित्र और उच्च मार्ग पर निर्देशित करने में मदद करता है। यह हमें उच्चतम मानसिक स्थिति में स्थिरता और स्थिरता प्रदान करता है और हमें अपनी इच्छाओं और उत्कर्ष के प्रति नियंत्रित रखने में मदद करता है।

उपवास धार्मिक समुदायों में एक सामूहिक अभ्यास भी है, जिससे समान भावना और एकता का अनुभव होता है। यह हमें समुदाय के साथ संबंध बनाने, साझा मूल्यों, धार्मिक आदर्शों और सामाजिक संबंधों को बढ़ावा देता है। उपवास के दौरान धार्मिक सभाओं, आराधना के समारोहों और सामाजिक संगठनों में सहभागी होने से लोगों के बीच सद्भावना, समरसता और सहयोग का माहौल उत्पन्न होता है।

उपवास के दौरान लोग सामान्यतः समुदाय के साथ समय बिताते हैं, जहां धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के अलावा उन्हें एक-दूसरे के साथ मिलने, वार्तालाप करने और साझा करने का अवसर मिलता है। इससे संघटित रूप से आयोजित की जाने वाली सामाजिक और धार्मिक गतिविधियाँ समुदाय को एकता और समरसता का अनुभव कराती हैं। लोग साझा भोजन, प्रार्थना और सेवा करके अपने संगठनिक और सामाजिक जीवन के माध्यम से संबंध बनाते हैं, जो एकता, सहयोग और उत्कर्ष की भावना को प्रकट करता है।

इस प्रकार, उपवास न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक और शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका महत्व समुदाय के साथ एकता, सामरस्य और संबंधों की मजबूती के लिए भी होता है। जब लोग सामूहिक रूप से उपवास का आयोजन करते हैं, तो वे एक साथ आक्रांत होते हैं और एक-दूसरे के साथ अपने आध्यात्मिक और धार्मिक अनुभवों को साझा करते हैं। इस प्रकार, उन्हें एक विशेष संबंध और आत्मीयता की अनुभूति होती है जो समुदाय को समरसता और एकजुटता का अनुभव कराती है।

उपवास का आयोजन समुदाय में सामरिक और सामाजिक साथीत्व को बढ़ाता है। लोग अपनी सामरिकता को दिखाकर, आपसी सहयोग करके और साझा कार्यों में भाग लेकर अपने समुदाय के साथ एकता और समरसता के महत्व को समझते हैं। उपवास के दौरान संगठनिक और सामाजिक कार्यों में सहभागिता करने से समुदाय का साथीत्व और समरसता मजबूत होती है, जिससे उन्हें सामाजिक और मानसिक समृद्धि की अनुभूति होती है।

उपवास के द्वारा समुदाय में सामाजिक साथीत्व और समरसता को मजबूत करने के लिए विभिन्न तरीकों का आयोजन किया जाता है। इसमें समुदाय के सदस्य एक साथ उपवास करते हैं, जिससे सामरिक और मानसिक संबंध बनते हैं। यह समय एकता, सहयोग और परस्पर समर्थन के लिए अद्वितीय मौका प्रदान करता है।

उपवास के दौरान सामाजिक साथीत्व बढ़ता है क्योंकि लोग साझा उपवास करके समय बिताते हैं। वे एक-दूसरे के साथ वार्तालाप करते हैं, अनुभव साझा करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागी होते हैं। इससे उन्हें एक दूसरे की भावनाओं और धार्मिक मूल्यों की समझ मिलती है, जो समुदाय में विशेष बंधन बनाती है।

इसके साथ ही, उपवास के दौरान समुदाय के सदस्य आपसी सहयोग करते हैं और सेवा के कार्यों में भी भाग लेते हैं। यह समुदाय को संगठित रखता है और उसे उत्कर्ष की ओर ले जाता है। साथ ही, उपवास के द्वारा समुदाय के सदस्यों के बीच साझा भागीदारी के माध्यम से समुदाय के सदस्यों के बीच गहरा संबंध बनता है। यह सदस्यों को अपने आप से और परमेश्वर से गहरे संबंध में लाता है और सामान्य धार्मिक मूल्यों के प्रतीक बनता है। यह समुदाय को एक संगठित साझा अनुभव प्रदान करता है, जहां सदस्य एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, साझा खुशियों और दुःखों को बांटते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।

उपवास के दौरान समुदाय के सदस्य भोजन को साझा करते हैं, जो सामूहिक भक्ति और संबंधों को बढ़ाता है। यह उन्हें एक-दूसरे के साथ सहयोग, प्रेम और समरसता की भावना का अनुभव कराता है। समुदाय के सदस्य एकता के साथ सामाजिक कार्यों में भी सहभागी होते हैं, जैसे दान, सेवा कार्य, और सामाजिक न्याय के लिए लड़ाई। यह समुदाय को संगठित और समरसता से चलने की प्रेरणा देता है और उसे समाजिक और मानसिक रूप से समृद्ध बनाता है।

उपवास के द्वारा समुदाय के सदस्यों के बीच एक सामरिक और सहयोगपूर्ण माहौल बनता है। लोग एकत्रित होकर धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में साझा भाग लेते हैं और अपने आपको उन गतिविधियों के माध्यम से संरक्षित महसूस करते हैं। यह समुदाय के सदस्यों के बीच विश्वास, समरसता, और आपसी सहयोग को बढ़ाता है।

उपवास के दौरान समुदाय के सदस्यों के बीच अन्य सामाजिक गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती हैं। यह समुदाय के सदस्यों के बीच आपसी मित्रता, समझदारी, और संघटनशीलता को बढ़ाती है। विभिन्न सेवा कार्यों, सामाजिक परियोजनाओं, या किसी सामाजिक मुद्दे के लिए आंदोलनों में समुदाय के सदस्यों का सहभाग उपवास के द्वारा बढ़ता है। इससे समुदाय की आपसी बंधुत्व और सहयोग की भावना मजबूत होती है और लोग एक-दूसरे के साथ सामाजिक न्याय के लिए संगठित रूप से काम करते हैं।

उपवास एक समावेशी, एकत्रित और समरस्थ समुदाय का नेतृत्व और सामूहिक सहयोग के साथ आयोजित की जाती है। समुदाय के सदस्य विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए संगठित होते हैं, जहां वे उपवास के महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ समुदाय के लिए सेवा करते हैं। इन कार्यक्रमों में समुदाय के सदस्य विभिन्न गतिविधियों में सहभागी होते हैं, जैसे सामाजिक सेवा, यात्रा या प्रदर्शन, सामुदायिक स्वच्छता अभियान, रोजगार सृजन, शिक्षा प्रोत्साहन आदि। इन कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय के सदस्य एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं, साझा मानसिकता और आपसी सहयोग विकसित करते हैं और उन्हें समाज सेवा के महत्वपूर्ण लाभों का अनुभव होता है।

इस प्रकार, उपवास एक समावेशी सामाजिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का समय होता है, जो समुदाय के सदस्यों के बीच आपसी समरसता, सहयोग और संघटनशीलता को बढ़ाता है। यह समुदाय को संगठित और समृद्ध बनाने में सहायता करता है, जिससे समुदाय के सदस्यों के बीच गहरा संबंध और आदर्शों की प्रेरणा होती है। उपवास के द्वारा समुदाय के सदस्यों को एक दूसरे के साथ सामरिक और सामाजिक गतिविधियों में एकीकृत होने का मौका मिलता है। यह संघटनाओं और समितियों के रूप में सामाजिक और आर्थिक उन्नति की ओर ले जाता है और अधिकारों, जिम्मेदारियों और समाजिक न्याय के प्रतीकों को बढ़ावा देता है। यह सामाजिक परिवर्तन की एक अवधारणा और प्राथमिकता को प्रकट करता है, जिससे समुदाय की स्थिरता, प्रगति और सहयोग की भावना विकसित होती है।

उपवास एक अवसर है जब समुदाय के सदस्य एकत्र होते हैं, धार्मिक प्रथाओं और सामाजिक कार्यों में सहभागी होते हैं, समाज सेवा करते हैं और एक दूसरे के साथ गहरा संबंध बनाते हैं। इस प्रकार, उपवास समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक अभ्यास है जो समरसता, सहयोग और सामूहिक उत्कर्ष को प्रोत्साहित करता है।

यहां कुछ बाइबल पदों की सूची है जो उपवास के बारे में उल्लेख करती हैं:

मत्ती 6:16-18

जब तुम उपवास करो, तो कपटियों की नाईं तुम्हारे मुंह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुंह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें; मैं तुम से सच कहता हूं, कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुंह धो। ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने; इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा॥"

योएल 2:12

तौभी यहोवा की यह वाणी है, अभी भी सुनो, उपवास के साथ रोते-पीटते अपने पूरे मन से फिरकर मेरे पास आओ।

दानिय्येल 10:3

उन तीन सप्ताहों के पूरे होने तक, मैं ने न तो स्वादिष्ट भोजन किया और न मांस वा दाखमधु अपने मुंह में रखा, और न अपनी देह में कुछ भी तेल लगाया।

यशायाह 58:6-7

जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?

क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बांट देना, अनाथ और मारे मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना?

मत्ती 9:14-15

तब यूहन्ना के चेलों ने उसके पास आकर कहा; क्या कारण है कि हम और फरीसी इतना उपवास करते हैं, पर तेरे चेले उपवास नहीं करते? यीशु ने उन से कहा; क्या बराती, जब तक दुल्हा उन के साथ है शोक कर सकते हैं? पर वे दिन आएंगे कि दूल्हा उन से अलग किया जाएगा, उस समय वे उपवास करेंगे।

यशायाह 58:9

तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं।

योना 3:5

तब नीनवे के मनुष्यों ने परमेश्वर के वचन की प्रतीति की; और उपवास का प्रचार किया गया और बड़े से ले कर छोटे तक सभों ने टाट ओढ़ा। तब यह समाचार नीनवे के राजा के कान में पहुंचा; और उसने सिंहासन पर से उठ, अपना राजकीय ओढ़ना उतार कर टाट ओढ़ लिया, और राख पर बैठ गया।

मरकुस 9:29

उस ने उन से कहा, कि यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती॥

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